- احمدخان دشتى:
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دل شوريدهام افتاد در بند |
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بنالم زين دلشوريده، تا چند؟ |
من و يعقوب عمرى گريه کرديم |
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من از فرزند مردم، او ز فرزند |
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- باکى دشتى:
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يقين يارا دلى از سنگ دارى |
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و يا از صحبت ما ننگ دارى |
طريق و رسم دلدارى نه اينست |
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که بر عاشق جهان را تنگ دارى |
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- پور نادم:
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فلک بنموده ما را بس دلآزار |
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غريب و خوار و مهجور از غم يار |
غريق موج غم شد، پور نادم |
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ز هجر يار، تا محشر گرفتار |
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- ترجمان:
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دو يار همنشينم: نکبت و غم |
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ز من منفک نمىگردند يکدم |
همانا تاکنون هفتاد سال است |
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که هم عهدند و هم سوگند، با هم |
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- علينقى دشتى:
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ز باد صبح چون خاطر کنم خوش؟ |
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که هر دم از غمى سوزم در آتش |
فراق دوستان فرسوده چون خاک |
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چو سود از آب جوى و جامى دلکش؟ |
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- شيداى دشتى:
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نگارا، رحمى آخر، رفتم از دست |
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قدم از بار هجران تو، بشکست |
قسم خوردى که هرگز نشکنى عهد |
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چرا پس عهد و پيمان تو بشکست؟ |
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- صافى:
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چنان زد تير مژگان بر دل من |
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که خون جارى شد از آب و گل و من |
ز روى آتشينش تابشى کرد |
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که شد بر باد کلّ حاصل من |
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- مفتون:
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خوشا فصل بهار و سيد گلزار |
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خوشا وصل نگار و نالهٔ زار |
خوشا مفتون و ايام جوانى |
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لب جوى و لب جام و لب يار |
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- مهياى برودخونى:
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شب ديجو رو من مهجور و ره دور |
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رقيبان در کمين و يار مستور |
ز مهيا مىتوان رفتن، نه قاصد |
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چه بايد کرد؟ المهجور معذور |
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- نادم دشتى:
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نه هر مرغى بود، مرغ شباويز |
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نه هر اسبى بود همتاى شبديز |
نه هر معشوقه دلدار است نادم |
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نه هر عاشق بود همتاى پرويز |
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- باقر لارى:
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به قرص ماه ماند صورت يار |
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چهل زنگى به دور مه گرفتار |
دو چشم يار باقر چون سهيل است |
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که هر ساله زند آتش به بلغار |
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