نادمت اهل الحمی یوما بذی سلم |
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فارفتهم و ندیمی بعدهم ندم |
عاشرتهم غانما بالطیب و الطرب |
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هاجرتهم نادما بالهم و السدم |
اصبحت من وصلهم فیالروح و الفرح |
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امسیت من هجرهم فیالضر و السقم |
فی ربعهم عشت ملتذا بصحبتهم |
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والدهر یعتقب اللذات بالالم |
حاشای ما کنت من یختار فرقتهم |
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لکن قضاء جری فی اللوح بالقلم |
فلیس لی منیه منذ افتقدتهم |
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الا ملاقاتهم فی ذلک الحرم |
ما بال عینی تذری من تذکرهم |
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بمدمع هطل کالغیث منسجم |
کالمزن تهمی بوبل معذق و دق |
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متی تشاهد و مض البرق من اضم |
حاولت املی کتابا کی اشیر بما |
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قلبی یقاسیه فی نبذ من الکلم |
من ذکرهم هملت عینی فما نزلت |
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علی الرقیمه حرف غیر منعجم |
مهما و طت ربی نجد و تربته |
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مالی تسابق راسی مسرعا قدم |
یا حبذا الربع و الاطلال و الدمن |
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من ارض نجد سقاه الله من دیم |
فیالها تربه کالمسک طیبة |
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جادت علیه الغوادی اجود الرهم |
کانها رفرف خضر قد انبسطت |
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تحت القر تفل و الریحان و العنم |
متی تهب صبا نجد بریلها |
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یستنشق المسک منها کل ذی خشم |
طوبی لصاد تروی من مناهلها |
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فی الحر مغترفا من مائها الشیم |
فلو غسلت العظام البالیات به |
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تعود منه حیوة الاعظم الرمم |
قد کان سکانها مستانسین بها |
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فی ارغد العیش محفوفین با النعم |
فالدهر غافصهم فیها و اجلاهم |
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عنها و فرقهم بالاهل و الحشم |
بیوتهم قد حوت صفرا بلا اهل |
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خیامها قد خلت من ساکن الخیم |
اضحت مساکن سادات اولی خطر |
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ظلت منازل اشراف ذوی همم |
مأوی الثعالب و الذئبان الضبع |
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مثوی الرفاقیف و الغربان و الرخم |
فاقفرت دورهم حتی کان بها |
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مستأنسا بعد لم یسکن و لم یقم |
و سد باب لدار ترب سدته |
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کانت مناص و جوه العرب و العجم |
دار لال رسول الله مقفرة |
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بنائها اسست بالجود و الکرم |
داریباهی بها جبریل مفتخرا |
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لوعد فیها من الحجاب و الخدم |
عفت رسوم مغاینهم و لولاهم |
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ربالخلیقة خلقالخق لم یرم |
قلوبهم من سلاف العلم طافحة |
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تفض منها و تجری صفوة الحکم |
وجوههم عن جمالالحق حاکیه |
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عن درک انوارهم طرف العقول عمی |
ما للقدیم شبیه حادث لکن |
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حدوثهم اشبه الاشیاء بالقدم |
یا فجعتی حین ما اصغی مصائبهم |
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ما لا یطاق لسانی ذکرها و فمی |
اوذوا و قد صبروا فی کل ماظلموا |
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والله من ظالمیهم خیر منتقم |
یعجل الله فی اظهار قائمهم |
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حتی یزیج ظلام الاعصر الدهم |
و یملاء الارض عدلا بعد ماملت |
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ظلماء ظلم علی الافاق مرتکم |
یا سادتی یا موالی الکرام بکم |
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رجاء عبد کثیرالذنب مجترم |
قد اصبحت لممی بیضاء فی سرف |
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والوجه کالقلب مسود من اللمم |
ظهری انحنی و انثنی من حمل اوزار |
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صغارها کالجبال الشم فیالعظم |
مالی سوی حبکم والاعتصام بکم |
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مطفی لحدة نار اوقدت جرمی |
فحبکم لمضیق اللحد مدخری |
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و بغض اعدائکم فیالحشر معتصمی |
لو لم ینلنی شراب من شفاعتکم |
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یا حر قلب منالحرمان مضطرم |
اتیتکم بمدیح لایلیق بکم |
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و هل یلیق بکم ما اسود من قلمی |
کلا هل یتاتی نشر مدحتکم |
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من اعجمی بنظم غیر منتظم |
هیهات و البلغاء الماد حون وان |
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اطروا بکل لسان عد فی بکم |
لا من مدبحی و لکن من مواهبکم |
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ارجو الحمایه یوما للعصاه حمی |
و کل ذی و طراعیت مذاهبه |
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لورام ابواب اهل الجود لم یلم |
صلی علیکم باذکاها و اطیبها |
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رب البرایا صلوة غیر منحسم |
ما انضرت ارض نجد من غمایمها |
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خضر المرابع و الاطلال و الاکم |
و استطربت سجعا فیها حمایمها |
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مغردات علی اغصان بالنغم |
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