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بيا از نو فريدونى بسازيم٭
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نظير: عالمى از نو بيايد ساخت و ز نو آدمى (حافظ)
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٭ فريدون عزيز از دست مو رفت
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.................. (باباطاهر)
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بيابان بود و تابستان و آب سرد و استسقاء٭
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نظير: گرگ گرسنه چو يافت نپرسد
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کاين شتر صالح است يا خر دجّال (سعدى)
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٭ به حرص ار شربتى خوردم مگير از من که بد کردم
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................ (سنائى)
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بياباننشين از زمين لرزه نترسد
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رک: بط را از طوفان چه باک؟
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بىادب با هزار کس تنهاست ٭
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٭ باادب را ادب سپاه بس است
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.............. (شهيد بلخى)
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بىادب محروم ماند از لطف حق٭
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مقایسه شود با: از بىادبى کسى به جائى نرسيد
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٭ از خدا خواهيم توفيق ادب
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..................... (مولوى)
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بىاذن خدا برگ نيفتد ز درخت٭
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رک: بىامر حق برگى نمىافتد از درخت
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٭ اى دوست مجو ز غير حق دولت و بخت
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.................... (...؟)
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بيا سوتهدلان گرد هم آئيم (يا: بيا سوتهدلان با هم بناليم)٭
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رک: اندوه دلِ سوخته دلسوخته داند (سعدى)
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٭................................
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که قدر سوتهدل دلسوته دارند (باباطاهر)
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بىامر حق برگى نمىافتد از درخت (مناقبالعارفين)
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نظير:
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اگر نباشد امر حق نمىافتد برگى از درخت
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- بىرضاى حق نيفتد هيچ برگ (مولوى)
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- بىاذن خدا برگ نيفتد ز درخت
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بىبند نگيرد آدمى پند (سعدى)
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رک: از بند گيرد آدمى پند
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بىبى از بىچادرى خانهنشين شده است
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نظير: عروس که بىتنبون شد کنج صندوقخانه مىنشيند
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بىبى تيز مىدهد گوش غلام را مىبرّند
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بىبىسلطان سر خودش را نمىتوانست ببندد رفت
عروسى سر عروس را قجرى ببندد (عامیانه) |
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رک: زن حاجى خانهٔ خودش اشکنه نمىتوانست بپزد رفت خانهٔ همسايه براى آش پختن
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بىپول اگر رستم زال است ذليل است.
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رک: آدمى در تنگدستى مىشود بىاعتبار
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بىپول مرو به بازار که آشَت ندهند
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صد نعرهزنى هيچ جوابت ندهند
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نظير:
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بىپول مرو به بازار
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هر چند سکندر زمانى
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- بىسيم ز بازار تهى آيد مرد (از قابوسنامه)
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- بىزر نتوان رفت به زور از دريا (سعدى)
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- هر که او بىمايه در بازار رفت
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عمر رفت و بازگشت او خام تفت (مولوى)
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رک: بىپولى حلقه به گوش فلک کند
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بىپول مرو به بازار که راهت ندهند
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صد نعره زنى هيچ جوابت ندهند
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رک: تا پول ندهى آش نخورى
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بىپول مرو به بازار
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هر چند سکندر زمانى
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رک: بىپول مرو به بازار که آشت ندهند...
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بىپولى حلقه به گوش فلک کند!
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نظير:
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دل بميرد به وقت بىپولى
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- داغ بر دست نهادن اثر بىپولى است
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- واى بر آن کو درم ندارد و دينار (لامعى)
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- بىزرى کرد به من آنچه به قارون زر کرد (صائب)
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- بىمايه اگر رستم زال است ذليل است (روحانى)
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- ز بىزرى است که آب رُخم ندارد رنگ (خواجو کرمانى)
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رک: بىزر مرغ بىبال و پر است.
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بىپولى يک عيب را صد تا مىکند، پولدارى صد عيب را يک عيب
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بىپير مرو تو در خرابات
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هر چند سکندر زمانى
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نظير:
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جز به تدبير پير کار مکن (سنائى)
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- جوانا سر متاب از بند پيران
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که رأى پير از بخت جوان بِهْ (حافظ)
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بىجامه بودن عيب مرد نيست، بىزير جامه گشتن ننگ و درد است
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بىجُرم دراز زبان بوَد و مُجرم کُنْد زبان (تفسير ابوالفتوح)
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بيچاره آن کسى که صاحب روى نکو بوَد ٭
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نظير: خوشگلى زياد هم مايهٔ دردسر است
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٭ تحريفى است از مصراع اول اين بيت سعدى:
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ناچار هر که صاحب روى نکو بوَد
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هر جا که بگذرد همه چشمى بدو بوَد
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بىحيا من نيستم چشمت بمال٭
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٭ سگ به نطق آمد که اى صاحب جمال
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.............. (شيخ بهائى)
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بىخار و حسد نيست گلِ فضل و هنر
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رک: هنرمند به حسد بىهنران در معرض تلف افتد
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بىخبرى، خوش خبري٭
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٭ اين مَثَل از زبان فرانسه وارد زبان فارسى شده و اصل آن در فرانسه چنين است:
Sans nouvelle ، bonne nouvelle
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بيخ گوشى حرف زدن کار شيطان است
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بيداد لطيفان همه لطف است و کرامت٭
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نظير:
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بلائى کز حبيب آيد هزارش مرحبا گويم
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- شرنگ از کف دوست تبر زد است
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- مهربانان زخمها خوردند و نخروشيدهاند (اوحدى)
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٭ حاشا که من از جور و جفاى تو بنالم
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..................... (حافظ)
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بيدار على باش که خوابت نبرد!
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بىدانشى مايهٔ کافرى است (ناصرخسرو)
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رک: آدمى را بتر از علت نادانى نيست
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بىدست شناور نتوان رسَت ز غرقاب (خاقانى)
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رک: بىدست شناور نتوان رفت به پاياب
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بىدستِ شناور نتوان رفت به پاياب
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نظير:
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ز بىآلتان کار نايَد درست (نظامى)
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- هيچکس بر بام نتوانَد شدن بىنردبان
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- هيچ مقصودى ميسّر نيست تا اسباب نيست (کاتبى)
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- بىدست شناور نتوان رَست ز غرقاب (خاقانى)
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بىدعوت به خانهٔ خدا هم نمىروند
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رک: ناخوانده به خانهٔ خدا نتوان رفت.
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بى دف و نى مىرقصد٭
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نظير:
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نزده مىرصد
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- بىدنگ مىدنگد
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- بى مى مست است
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٭ يا: بىداريه مىرقصد
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بىدوست خاک بر سر چاه و توانگري٭
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نظير: بىدوست گلشن گلخن است
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٭ با دوست کنج فقر بهشت است و بوستان
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................... (سعدى)
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بيدى نيست که از اين بادها بلرزد
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نظير: شترى که چهار دندان شده باشد از آواز جرس نترسد
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بىرضاى حق نيفتد هيچ برگ (مولوى)
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رک: بىامر حق برگى نمىافتد از درخت
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بىرفيقان سفر سقر باشد٭
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٭ با رفيقان سفر مَقَر باشد
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.................. (سنائى)
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بىرقم قوشچىباشى است!
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بدون حق در امور مداخله يا فضولى مىکند
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بىرنج گنج ميسّر نمىشود
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رک: نابرده رنج گنج ميسّر نمىشود
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بيرون روشن کن خانه تاريک کن
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رک: تو کوچه عسل، تو خانه حنظل
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بيرون ز وطن پا مگذاريد که چاه است٭
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٭ غربت مپسنديد که افتيد به زندان
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....................(صائب)
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بيرونمان مردم را مىکشد، درونمان خودِ ما را!
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نظير:
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با سيلى صورت خود را سرخ نگه داشتهايم
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- از برون نقش و نگار، وز درون نالهٔ زار
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بىرياضت نتوان شهرهٔ آفاق شدن٭
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نظير: بىرياضت نيافت کس مقصود
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٭ ............................
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مه چو لاغر شود انگشتنما مىگردد (صائب)
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بىرياضت نيافت کس مقصود٭
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نظير: بىرياضت نتوان شهرهٔ آفاق شدن
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٭ تا نسوزى تو را چه بيد و چه عود
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.................. (سنائى)
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بىزبانى بهتر از بدزبانى
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نظير: لالى بهتر از بىکمالى
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بىزران از دستبرد رهزنان آسودهاند (صائب)
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رک: آسوده کسى که خر ندارد
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بىزر بىپر است
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رک: بىزر مرغ بىبال و پر است
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بىزر مرغ بىبال و پر است
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نظير:
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بىزر بىپر است
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- هر که زر ندارد پر ندارد
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- هر که مال ندارد يار ندارد
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- هر که بر دينار دسترس ندارد در دنيا کس ندارد (سعدى)
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- واى بر آنکو درم ندارد و ديار (لامعى)
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- بىپول اگر رستم زال است ذليل است
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- بىپولى حلقه به گوش فلک کند
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- آشِنايش نيست در عالم کسى کو مفلس است
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- نبض تهيدست نگيرد طبيب (پروين اعتصامى)
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