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دنيا دار مکافات است
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نظير:
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دنيا مکافات خانه است
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ـ مکافات به آن دنيا نمىماند
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ـ تقاص به قيامت نمىماند
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ـ دنيا اگرچه سراى آفات است اما دار مکافات نيز هست
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نيزرک: از مکافات عمل غافل مشو...
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دنيا دايم بر يک قرار نيست
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نظير:
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هميشه در به يک پاشنه نمىگردد
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ـ دنيا هزار رو دارد
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ـ آنچه ديدى برقرار خود نمانْد
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و آنچه هم بينى نمانَدْ برقرار (سعدى)
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ـ دائماً يکسان نمانَد حال دوران غم مخور (حافظ)
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ـ هميشه آب در يک جوى نمىرود
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ـ روزگار چون درياست، گاهى ببخشد و گاهى بکُشد (تاريخالوزراء)
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دنيا دنياى زور است
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رک: زورت بيش است، حرفت پيش است
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دنيا دو روز است، باقيش روز به روز است٭ (عا).
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نظير: دنيا محل گذر است ـ دنيا پنج روز است
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٭ به مزاح بهکار برند
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دنيا دونپرور است
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نظير:
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زمانه سفلهپروز است
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ـ زمانه سفلهنواز و مردگُداز است
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ـ هزاران خر زمانه بُرد بر بام
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ولى يک يوسف از چَهْ برنياورد
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ـ دنيا حريف سفله و معشوق بىوفاست (سعدى)
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ـ دنيا رذلپسند است
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ـ فلک نرکُش و مادهپرور است
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دنيا ديدن٭ بِهْ از دنيا خوردن است
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نظير:
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جهان ديدن بهتر از جهان خوردن است
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ـ بر و اندر جهان تفرّج کن
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پيش از آن روز کز جهان بروى (سعدى)
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٭ يا: دنيا گشتن...
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دنيا را آب ببرد فلان را خواب مىبرد٭
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بىنهايت بىقيد و تنبل است
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٭ تمثّل:
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عاشقان را همه گر آب بَرَد
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خوبرويان همه را خواب بَرَد (ايرج ميرزا)
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دنيا را ببين چه فنده، کور به کچل مىخنده! (عا).
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رک: ديگ به ديگ مىگويد رويت سياه
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دنيا را هرطور بگيرى مىگذرد
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رک: سخت مىگيرد جهان بر مردمان سختکوش
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دنيا رذلپسند است
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رک: دنيا دونپرور است
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دنيا زندان مؤمنان است
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دنيا سراى گذشتنى است و حُطام او گذاشتنى (مقامات حميدى)
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دنياطلبان ز آخرت محرومند (اوحدى)
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دنيا طلبيديم و بهجائى نرسيديم
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آيا چه شود آخرت ناطلبيده؟
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دنيا طويلهاى است پر از جنس چارپاى (عرفى)
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نظير:
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خر به بازار رى فراوان است
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ـ اگر بخواهند براى هر خرى آخور ببندند بايد از اين جا تا کناره گرد آخور بست!
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دنيا عزيز و مال دنيا عزيزتر است
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نظير: دنيا با مالش عزيز است
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دنيا عزيز و مال عزيز است و جان عزيز
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ليکن رفيق بر همه چيزى مقدّم است
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نظير:
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از هر چه بگذرى سخن دوست خوشتر است (سعدى)
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ـ رضاى دوست بهدست آر و ديگران بگذار
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دنيا قديم است
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نظير: اين همان چشمهٔ خورشيد جهانافروز است
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که همى تافت بر آرامگه عاد و ثمود (سعدى)
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دنيا گذرگاه است نه قرارگاه
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نظير:
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دنيا محل گذر است
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ـ دنيا سراى گذشتنى است (و حطام او گذاشتنى)
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ـ اين زن و زور و زر گذاشتنى است (اوحدى)
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دنيا لُنگ حمام است هر روز عورت يکى را مىپوشاند
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نظير: دنيا شاخ گاو است هر روز به ماتحت يکى فرو مىرود!
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دنيا محل گذر است
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رک: دنيا دو روز است، باقيش روز به روز است
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دنيا مزرعهٔ آخرت است
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رک: دنيا بازار آخرت است
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دنيا مکافات خانه است
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رک: دنيا دار مکافات است
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دنيا مکرّرات است
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رک: تا چرخ و فلک بر سرِ دور است هر شب همينطور است
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دنيا ميدان جنگ است
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رک: دنيا آکل و مأکول است
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دنيا نيرزد آنکه پريشان کنى دلى٭
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مقا: زنهار ميازار ز خود هيچ دلى را
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٭ .........................
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زنهار بد مکن که نکردست عاقلى (سعدى)
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دنيا و آخرت با هم جمع نمىشوند
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نظير:
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دين و دنيا بههم نيايد راست (نظامى)
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ـ دين و دنيا دو ضد يکدگرند (سنائى)
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ـ مَثَل دنيا و آخرت مَثَلِ شخصى است که دو زن دارد هر کدام را راضى ساخت ديگرى را مکدّر کرده است (از ترجمه زهرالربيع)
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دنيا وفا ندارد
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نظير:
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دنيا وفا ندارد، اى نور هر دو ديده (حافظ)
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ـ وفادارى مجوى از دهر خونخوار (سعدى)
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دنيا هزار رو دارد
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رک: دنيا دايم بر يک قرار نيست.
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دنيا هَمَش (=همهاش) پنج روزه، باقيشَمْ (=باقىاش هم) روز به روزه! (عا).
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عبارتى است که به شوخى و طنز در شکايت از روزگار و سختى زندگى بر زبان رانند
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دنيا همه هيچ و کار دنيا همه هيچ
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اى هيچ ز بهر هيچ در هيچ مپيچ (جامى)
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دنياى خراب و شهر ويران
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خر خورده شرابِ تخم ريحان
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رک: چرا دنيا نشود خراب که گربه بههم مىخورد شراب
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دنياى دو رنگ به پشيزى نيرزد (تاريخ بيهقى)
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